भारत की आजादी से पहले से लेकर वर्तमान समय तक, बिहार हमेशा राजनीति का केंद्र बिन्दू रहा है ……

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भारत की आजादी से पहले से लेकर वर्तमान समय तक, बिहार हमेशा राजनीति का केंद्र बिन्दू रहा है। चाहे 1975 में जेपी की अगुवाई में संपूर्ण क्रांति के नारे से इंदिरा सरकार का गिरना हो या साल 2024 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का NDA में शामिल होकर INDIA का खेल खराब करना हो, बिहार हमेशा राजनीतिक रुप में अग्रणी रहा है।

अब एकबार फिर बिहार की राजनीति में सुगबुगाहट तेज हो गई है। पिछले दो दशकों से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार की पार्टी ने एक नारा दिया है- ‘जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो’। जनता दल यूनाइटेड के द्वारा ये नारा तब दिया गया है जब बिहार विधानसभा चुनाव में महज एक साल रह गए हैं। JDU के इस बयान ने विरोधियों से लेकर सहयोगियों तक के कैंप में हलचल मचा दी है।

दरअसल, अगले साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है। JDU की ओर से साफ कर दिया गया है कि अगले चुनाव में भी नीतीश कुमार ही NDA गठबंधन का चेहरा होंगे। यही कारण है कि नीतीश कुमार अपनीताकत दिखाने के लिए चंपारण से प्रगति यात्रा निकालने जा रहे हैं। इस दौरान वो पूरे बिहार की यात्रा करेंगे। गौरतलब है कि नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू वाली रही है। उन्होंने अपने आप को हमेशा नए बिहार के निर्माता के तौर दिखाया है। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में JDU की दुर्गति के बाद अब नीतीश कुमार संभले नजर आ रहे हैं। साथ ही लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने के बाद सीएम नीतीश कुमार एकबार फिर अपनी पार्टी को बिहार में मजबूत बनाने में जुट गए हैं।

JDU के नारे क्या है मतलब?

वैसे तो बिहार के मुख्यमंत्री पहले भी कई यात्रा पर निकल चुके हैं। जिसके दौरान उन्होंने अपने कार्यकाल में किए कार्यों का जमकर प्रचार-प्रसार किया है। लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ है कि ये नीतीश कुमार की ये यात्रा इतनी चर्चा में है?दरअसल, महाराष्ट्र चुनाव के बाद एख निजी टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में नेतृत्व और सीएम के सवाल पर कहा था कि बीजेपी में निर्णय लेने की एक प्रक्रिया है। पार्लियामेंट्री बोर्ड इस तरह के फैसले लेता है। सभी दल साथ में बैठ कर ये तय करेंगे और तय करेंगे तो यह बता भी देंगे। गृह मंत्री के इस बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। कयास यह लगाया जाने लगा कि बीजेपी बिहार में भी महाराष्ट्र मॉडल पर चुनाव लड़ेगी। यानी चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ा जाएगा लेकिन जीत के बाद NDA के सभी दल बैठ कर सीएम फेस पर फैसला करेंगे।
[23/12, 2:19 pm] Radhe Radhe: यही कारण है कि JDU के द्वारा दिया गया नारा-‘जब बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो’, भाजपा को स्पष्ट संदेश है। JDU इशारों में साफ संदेश देने की कोशिश कर रही है कि नीतीश कुमार के बिना कोई भी दल बिहार की सत्ता में नहीं स्थापित हो सकता है। अब सच्चाई भी यही है। पिछले दो दशकों में कई बार सरकार बदली। सरकार के भागीदार बदले। लेकिन मुख्यमंत्री हमेशा नीतीश कुमार ही रहे। चाहे कोई भी परिस्थिति आई, सत्ता की कमान नीतीश कुमार ने अपने हाथों मे रखी। इस कारण उनकी आलोचना भी हुई लेकिन ये उनकी राजनीतिक ताकत को दिखाती है कि कोई कितनी भी बड़ी और मजबूत पार्टी हो जाए लेकिन बिहार की राजनीति के केंद्र बिंदू वही बने रहेंगे।

भाजपा का क्या प्लान?

दरअसल, पिछले दो दशकों में भाजपा अधिकत्तर समय NDA गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रही है। लेकिन फिर भी बिहार में NDA का चेहरा नीतीश कुमार ही रहे हैं। भले ही उन्होंने कई बार भाजपा का साथ छोड़ राजद से मिलकर सरकार बना लिया लेकिन बीजेपी की मजबूरी रही की उन्हें सत्ता में आने के लिए उन्हें नीतीश कुमार का समर्थन लेना पड़ा। लेकिन अब माहौल और बीजेपी के सुर बदल रहे हैं। बीते दिनों बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने प्रेस वार्ता करके यह साफ कर दिया था कि नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा। इसके अलावा बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी नीतीश कुमार की अगुवाई में भी चुनाव लड़ने की बात कही। हालांकि, किसी ने चुनाव में जीत के बाद कौन NDA से सीएम होगा, यह स्पष्ट नहीं किया है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार में महाराष्ट्र फॉमूला लागू किया जाएगा। चेहरा जरूर सीएम फेस का होगा लेकिन चुनाव के बाद बीजेपी का सीएम बनेगा।

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