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बिहार सरकार ने भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया में कई बार संशोधन किए हैं, जिसके कारण किसानों और रैयतों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। बिना तैयारी के शुरू हुआ यह सर्वेक्षण अब तक पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है।
भूमि सर्वेक्षण के नियमों में हुए इन बदलावों ने रैयतों के लिए कंफ्यूजन और खर्च दोनों बढ़ा दिए हैं।
सर्वे में बदलाव के कारण रैयतों को हुई परेशानी
बिहार में भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया में कई बदलाव किए गए हैं, लेकिन इन बदलावों की जानकारी रैयतों तक समय पर नहीं पहुँच पाई है। परिणामस्वरूप, बहुत से रैयतों को यह नहीं पता चला कि उन्हें क्या करना है और किस तरीके से आवेदन देना है।
उदाहरण के लिए, पहले वंशावली बनाने के लिए सरपंच को जिम्मेदार ठहराया गया था, फिर इसे स्वयं द्वारा लिखित देने की बात की गई, और अब सरकार ने यह घोषणा की है कि सर्वे के लिए वंशावली का प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं होगा। यह अचानक हुए बदलावों ने रैयतों को भ्रमित कर दिया, जिससे पिछले तीन महीनों में लाखों रैयतों को वंशावली बनाने में खर्च करना पड़ा।
समय सीमा में बढ़ोतरी और प्रक्रिया में बदलाव
भूमि सर्वेक्षण को एक साल के भीतर पूरा करने का दावा करने वाले बिहार सरकार के भू-राजस्व विभाग ने अब तक दो बार समयसीमा बढ़ाई है। अब विभाग ने नया गाइडलाइन जारी किया है, जिसके अनुसार यदि किसी जमीन के दखल या कागजात में गड़बड़ी पाई जाती है, तो संबंधित रैयत को दावा-आपत्ति दर्ज करनी होगी।
इसके अतिरिक्त, किश्तवार (गांवों का मानचित्र तैयार करना) का समय 30 दिन से बढ़ाकर 90 दिन कर दिया गया है। खानापुरी पर्चा वितरण का समय 15 दिन से बढ़ाकर 30 दिन, और इस पर दावा-आपत्ति दर्ज करने का समय 30 दिन से बढ़ाकर 60 दिन कर दिया गया है। ये बदलाव सर्वे प्रक्रिया को सरल और समयबद्ध बनाने के उद्देश्य से किए गए हैं।
अब तक का समय बढ़ाकर मार्च 2025 तक सभी नागरिकों को भूमि सर्वेक्षण के लिए आवेदन देना अनिवार्य कर दिया गया है। एक अप्रैल 2025 से सर्वेक्षण की कार्यवाही धरातल पर पूरी तरह से शुरू हो जाएगी। आप जल्द से जल्द अपने जमीन का सर्वे करा लें।