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पटना /प्रसिद्ध यादव।
खबरों के पीछे की ख़बर!एफआईआर दर्ज नहीं करना,दर्ज होने पर कार्यवाई नहीं करना ये पुलिस की आम बात है और इसे ये अपना विशेषाधिकार समझती है, लेकिन राष्ट्रद्रोही कार्य करने वाले पर,आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पर एफआईआर होने पर कार्यवाई नहीं होना सकते में डाल देता है।आखिर कैसी पुलिस की डियूटी हो रही है?आमजन के शिकायतें पर पुलिस एक्शन मोड में नहीं होती है तो आमजन विधि के विधान मानकर आंसू पीकर रह जाते है, उन्हें हिम्मत नहीं होता है कि थानां के खिलाफ कहीं शिकायत कर सके,क्योंकि उन्हें इस बात का डर होता है कि कहीं कोई झूठे मुकदमे में फंसा न दे,लेकिन जब बात राष्ट्र की सुरक्षा और अस्मिता पर आती है तो चुप रहना कायरता है। देश विरोधी गतिविधियों के बारे में फुलवारी में बांटे गए पंफलेट की जानकारी फुलवारीशरीफ थाना प्रभारी को 10 जून को मिल गई थी। इस मामले में उनकी ओर से फुलवारीशरीफ थाने में अज्ञात के खिलाफ भादवि की धारा 153 ए/295/295ए/294/120(बी)34 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। बांटे गए पंफलेट व सोशल मीडिया पर वायरल किए गए पर्चे पर तमाम तरह के भड़काऊ बातें की गईं थीं। इसके बाद से ही पीएफआई व गजवा-ए-हिंद का एडमिन मरगूब पुलिस के रडार पर था। एक माह तक चले ऑपरेशन के बाद पुलिस इसका भंडाफोड़ कर सकी। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि एफआईआर दर्ज कर पुलिस कार्रवाई से बचती रही। आईबी का इनपुट मिलने के बाद पुलिस को यह कार्रवाई करनी पड़ी। अमरावती व उदयपुर कांड में भी पीएफआई का हाथ हो सकता है।सवाल है कि स्थानीय पुलिस एक महीने तक क्या कर रही थी? अगर आईबी का इनपुट नहीं मिलता तब आतंकी गतिविधि जारी रहती? क्या ऐसे संवेदनशील मुद्दे को बिहार के, केंद्र के आला अफसरों को अवगत करवाया गया? अगर नहीं तो पूरे प्रकरण को उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है ताकि हर किसी की कर्तव्यनिष्ठता ,कर्तव्यहीनता, संलिप्तता सामने आए।