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!पटना/प्रसिद्ध यादव।
संसद में जुमलेवजी, तड़ीपार जैसे शब्दों का खूब हुआ। क्यों हुआ और कौन क्यों किया ? इसका कारण भी लोग जानते हैं। हिंदी के ऐसे करीब 100 शब्द असंसदीय हो गए।इसका उपयोग न केवल संसद में होगा,बल्कि देश के किसी विधानमंडल में भी नहीं होगा। अगर कोई सदस्य इसका उपयोग करते हैं तो कोई न्यायालय का मामला नहीं होगा,लेकिन सदन की कार्यवाही से ये शब्द खत्म हो जाएंगे।सदनों में लतमजूतम, मारपीट,खिंचखींचीं ,घसीटा घसीटी खूब हुआ, मार्सल से पिटवाया गया, जिसका ताजा उदाहरण बिहार विधानसभा है और यही पर सीएम स्पीकर को डांट कर चुप करवा दिया था।अब सवाल है कि ये सब कुकृत्य कितना संसदीय था?संसद के दोनों सदन राज्यसभा और लोकसभा में शब्दों के इस्तेमाल को लेकर नई गाइडलाइन जारी की गई है. जुमलाबाजी, कोरोना स्प्रेडर, जयचंद, भ्रष्ट, बाल-बुद्धि, शर्म, विश्वासघात, ड्रामा, पाखंड, लॉलीपॉप, चांडाल-चौकड़ी, अक्षम, गुल-खिलाए, पिट्ठू, गद्दार, घड़ियाली आंसू, ख़रीद-फरोख़्त, काला दिन, विनाश पुरुष, तानाशाह, गिरगिट, सेक्सुअल हैरेसमेंट खालिस्तानी, खून से खेती, जुमलाजीवी, अनार्किस्ट, गद्दार, गिरगिट, ठग, घड़ियाली आंसू, अपमान, असत्य, भ्रष्ट, काला दिन, कालाबाजारी, खरीद-फरोख्त, दंगा, दलाल, दादागिरी, दोहरा चरित्र, बेचारा, बॉबकट, लॉलीपॉप, विश्वासघात, संविधानहीन, बहरी सरकार, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, उचक्के, अहंकार, कांव-कांव करना, काला दिन, गुंडागर्दी, गुलछर्रा, गुल खिलाना, गुंडों की सरकार, चोर-चोर मौसेरे भाई, चौकड़ी, तड़ीपार, तलवे चाटना, तानाशाह और दादागिरी।जैसे शब्दों को अमर्यादित माना गया है.. सचिवालय द्वारा जारी बुकलेट के अनुसार ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं माना जाएगा.ऐसे शब्दों से परेशानी किसको और क्यों है? इसका भी स्पष्टीकरण होना चाहिए।