बिहार का बैकटपुर धाम, जहां शिवलिंग रूप में हैं भगवान शिव के साथ माता पार्वती:–

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खुसरूपुर।शुभम तिवारी की रिर्पोट।
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पटना जिले के बैकठपुर गांव का गौरीशंकर मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु यहां जल चढ़ाने पैदल ही पटना, फतुहा, बख्तियारपुर और बाढ़ से आते हैं। यह मंदिर से कई किवदंतियां जुड़ी हैं।

मंदिर का इतिहास महाकाव्यों पुराणों, जातक ग्रथों एवं यात्रा वृतांत में मिलता है। रामायण में बैकठपुर मंदिर की चर्चा है। उस वक्त यह जगह बैकुंठ वन के रूप में जाना जाता था। रामायण के अनुसार भगवान राम ने रावण को लंका में जाकर मारा था तो उन्होंने ब्राह्मण हत्या का दोष मिटा लिए बैकुंठ वन के इस गौरीशंकर मंदिर में पूजा की थी।

वे गंगा के पार जिस जगह ठहरे थे वह राघवपुर कहलाया, जो कालांतर में राघोपुर हो गया (वैशाली जिले में स्थित है)। मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। जगतगुरु पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी महाराज ने वर्ष 2007 में मंदिर में कई दिनों तक प्रवास किया था।


मुगलकालीन शैली में मंदिर:-
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मंदिर की वर्तमान बनावट गलकालीन शैली की है। इसका जीर्णोद्धार मुगल बादशाह अकबर के सेनापति राजा मानसिंह ने कराया था। राजा जरासंध प्रतिदिन यहां पूजा करने आता था।


शिवलिंग में माता पार्वती भी:-
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मंदिर में स्थापित शिवलिंग अनोखा है। इस मंदिर में माता पार्वती भगवान भोलेनाथ के साथ एक ही शिवलिंग में समाहित हैं। इसके अलावा इसमें छोटे-छोटे 108 शिवलिंग उकेरे गये हैं।


रामायण में है चर्चा:-
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मंदिरका अपना ऐतिहासिक महत्व है। वर्तमान में जो बैकटपुर गांव देखा जाता है, असल में प्राचीनकाल में गंगा के तट पर बसा यह क्षेत्र बैकुं‍ठ वन के नाम से जाना जाता था। आनंद रामायण में इस गांव की चर्चा बैकुं‍ठा के रूप में हुई है। श्रुतियों के अनुसार लंका विजय के बाद रावण को मारने से जो ब्राह्मण ह‍त्या का पाप लगा था, उस पाप से मुक्ति के लिए श्रीराम इस मंदिर में आए थे। यह भी कहा जाता है कि यहां आने के लिए गंगा नदी के उस तरफ के एक गांव में श्रीरामच‍ंद्र जी रात्रि विश्राम किया था, जिसके कारण कारण उस गांव का नाम राधवपुर पड़ा जो वर्तमान में वैशाली जिले के राधोपुर के नाम जाना जाता है।


जरासंध को मिली थी असीम शक्ति
इस मंदिर का इतिहास महाभारत के जरासंध से भी जुड़ा हुआ है। मान्यताओं के अनुसार जरासंध भगवान शंकर का बड़ा भक्त था। जरासंध रोज इस मंदिर में राजगृह से पूजा करने आता था। किवदंतियों के अनुसार इसी बैकुण्ठ नाथ के आशीर्वाद से जरासंध को मारना असंभव था।


कहा जाता है कि जरासंध हमेशा अपनी बांह पर एक शिवलिंग की आकृति का ताबीज पहना करता था। भगवान शंकर का वरदान था कि जब तक उसके बांह पर शिवलिंग रहेगा तब तक उसे कोई हरा नही सकता है। कहते हैं कि जरासंध को पराजित करने के लिए श्रीकृष्ण ने छल से जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को गंगा में प्रवाहित करा दिया और तब उसे मारा गया। जरासंध की बांह पर बंधे शिवलिंग को जिस जगह पर फेंका गया उसे कौड़िया खाड़ का गया था।


यहीं फंसी थी मानसिंह की नाव:-
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कहा जाता है कि अकबर के सेनापति रहे राजा मान सिंह जब जलमार्ग से बंगाल विद्रोह को खत्म करने सपरिवार रनियासराय जा रहे थे उसी वक्त राजा मान सिंह की नौका कौड़िया खाड़ में फंस गई।
काफी प्रयास के बाद भी जब राजा मानसिंह की नौका कौड़िया खाड़ से नहीं निकल सकी तो पूरी रात मानसिंह को सेना सहित वहीं डेरा डालना पड़ा। कहते हैं कि रात को ही राजामान सिंह को सपने में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और अपने जीर्ण-शीर्ण मंदिर को फिर स्थापित करने को कहा। मान सिंह ने उसी रात मंदिर के जीर्णोद्धार का आदेश दिया और उसके बाद यात्रा शुरू की और बंगाल में उन्हें विजय प्राप्त हुई।


सीएम नीतीश कुमार भी हैं इस मंदिर के भक्त:-
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पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व वाले इस मंदिर में सीएम नीतीश कुमार भी आते-रहते हैं। यही नहीं बैकटपुर मंदिर में पुरी के शंकराचार्य जगतगुरू निश्चलानद जी भी 2007 में आ चुके हैं। वैसे तो हर साल इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है लेकिन श्रावण माह में भोलेनाथ यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।


भक्तों की मंदिर पर है अगाध आस्था:-
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भक्तों की इस मंदिर पर अगाध श्रद्धा बताती है कि सच्चे मन से बैकुंठधाम में भोले शंकर की जो पूजा करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। सावन माह में इस मंदिर में लाखों की संख्या में लोग जलाभिषेक करते हैं। पटना के कलेक्टेरिएट घाट फतुहा के त्रिवेणी कटैया घाट से भी हजारों की संख्या में लोग रविवार को जल उठा कर रात भर की यात्रा कर सोमवार को जल चढाते है।


काशी में विश्वनाथ और देवधर में बैद्यनाथ धाम के बाद इस मंदिर को बिहार का बाबाधाम कहा जाता है। चीनी यात्री फाह्यान ने यात्रा वृतांत में नालंदा दौरे के दौरान बैकठपुर मंदिर की चर्चा की है। अकबर का सेनापति राजामान सिंह ने इस मंदिर के जीर्णेद्धार कराया। वर्तमान जो स्वरूप देखा जा सकता है वह राजा मान सिंह द्धारा ही बनाया गया है।

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