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पटना/प्रसिद्ध यादव।
पुलिस ने ली थी स्वतः संज्ञान!सोशल मीडिया पर अनाप शनाप लिखने वाले को यह एक खतरे की घण्टी है! बरसा श्री की कविता पर पुलिस संज्ञान ली जो फब पर डाला गया था।कविता कितनीं आपत्तिजनक थी,ये जाँच का बिषय है।
देश में अपनी दर्द को, नाइंसाफी को अनेक लोग सोशल मीडिया पर डालते हैं, यहां तक कि खबरें भी बनती है, सम्बंधित विभाग को मेल करते हैं, संज्ञान लेने की बात तो दूर विभाग माकूल जवाब भी देना जरूरी नहीं समझता है।आखिर क्यों? कानून की सम्यक दृष्टिकोण क्यों नहीं है? अगर उक्त छात्रा प्रतिबंधित संगठन के पक्ष में अपनी कविता लिख दी तो इससे किसको कितना नुकसान हुआ?बताना चाहिए।
भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए अधिकारी जेल में नहीं जाकर उसी कार्यालय में रुतवा दिखा रहा है। आखिर ये दोहरा मापदंड क्यों? प्रतिबंधित संगठन उल्फा (आई) के समर्थन में कविता लिखने के आरोप में मई में गिरफ़्तार की गईं 19 साल की छात्रा बरसाश्री बुरागोहाईं को ज़मानत दे दी है। पुलिस ने बरसाश्री को गोलाघाट ज़िले के सरूपथार से तब गिरफ़्तार किया था, जब वो अपनी एक सहेली के घर घूमने गई थीं।
असम पुलिस ने बरसाश्री के फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर अपडेट की गई एक पोस्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया था। बरसाश्री ने पिछले कुछ महीनों में क़रीब आठ कविताएं लिखी थी, फ़ेसबुक पर साझा किया गया था। जोरहाट के डीसीबी गर्ल्स कॉलेज में बीएससी गणित के द्वितीय वर्ष की इस छात्रा को ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए की धारा 10 और 13 के तहत गिरफ़्तार किया गया था।छात्रा को कॉउंसलिंग कर के समझाया भी जा सकता था कि आगे से ऐसी कविता न लिखे।