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पटना /प्रसिद्ध यादव।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि 2020 में 2019 की तुलना में आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. वर्ष 2019 में इनकी संख्या 1,39,123 थी. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत काम करने वाले एनसीआरबी ने बताया कि (प्रति लाख जनसंख्या) आत्महत्या दर में भी बढ़ोतरी हुई है. यह 2019 में 10.4 थी, लेकिन पिछले साल यह 11.3 रही.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 के दौरान कृषि क्षेत्र के 10,677 लोगों (5,579 किसानों और 5,098 कृषि मजदूरों) ने आत्महत्या की, जो देश में आत्महत्या करने वालों (1,53,052) का सात प्रतिशत है. रिपोर्ट के अनुसार 5,579 किसान आत्महत्या मामलों में से कुल 5,335 पुरुष और 244 महिलाएं थीं. इसमें कहा गया है कि 2020 के दौरान खेतिहर मजदूरों द्वारा की गई 5,098 आत्महत्याओं में से 4,621 पुरुष और 477 महिलाएं थीं.
आज हर चीज की एमआरपी है लेकिन किसानों की फसल की नहीं हैं। अब ऐसी नीति बना दी गई है जिसमें किसान खेती भी करेगा, उत्पादन पर करेगा, ग्रेडिंग भी करेगा, फ़ूड प्रोसेसिंग और पैकेजिंग भी करेगा जिससे किसान भी एमआरपी वाला बनेगा। सरकार कहती है कि यहां का किसान एमएसपी वाला नहीं बल्कि एमआरपी वाला बने। लेकिन धरातल पर कुछ और ही तस्वीर दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र में किसानों ने प्याज और लहसुन की शव यात्रा निकाली। किसानों को प्याज और लहसुन के उचित दाम नहीं मिल रहे है जिसके चलते यह प्रदर्शन किया गया। लहसुन की कीमत दो रुपये तीन रुपये किलो है।किसान लहसुन को मंडी में न ले जाकर नदियों में फेंक रहे हैं।
यही हाल कुछ साल पहले बिहार में मक्के की फसल में हुई थी,जब किसान मक्के को सड़कों पर फेंक दिए थे ।बिहार अभी भीषण सुखाड़ की चपेट में है।किसान घर के पूंजी लगाकर किसी तरह धान की रोपाई किये ,अब धान पानी के बिना सुख रहा है।भादो के महीने में खेतों में दरार हैं, नदी नहर,जलाशय सभी सूखे हुए हैं।किसान खेत में मुरझाए फसलों को देखकर मुरझा रहे हैं, भविष्य अंधकारमय देख रहे हैं। वही उतरी बिहार के कुछ जिले बाढ़ से प्रभावित है।
क्या अन्य क्षेत्रों में ऐसी निराशा है?लगता है कि प्रकृति के साधु किसान अब समाधि की ओर जा रहे हैं।सरकार के पास कृषि रोड मैप,ब्लू प्रिंट,लैब ,तकनीकी , मंत्रालय,विश्विद्यालय, वैज्ञानिक, अधिकारी से लेकर सलाहकार तक हैं ,लेकिन किसानों की दशा में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ और इसका सबसे बड़ा कारण फसलों के उचित मूल्य नहीं मिलना और सिंचाई की समुचित व्यवस्था न होना है।किसानों की बातें करने वाले न जाने कितने लोग संसद से लेकर विधानमंडल तक के सफर कर लिया, अपना काम बना लिया, लेकिन किसानों की जो दशा बिगड़ी तो बिगड़ती ही चली गई और अब ये साधु समाधि लेने लगे हैं।