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-1100 ई. में डोकहर गांव स्थित चंद्रभागा नदी से मां राजराजेश्वरी प्रतिमा निकला गया
- 4बजे सुबह से ही पूजा के लिए लग जाती है श्रद्धालुओं की भीड़
- यहां का बलि प्रदान की प्रथा अद्भुत है, मंदिर के गर्भ गृह में ही बलि प्रदान दी जाती है
मधुबनी जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर दूर कलुआही प्रखंड के डोकहर गांव स्थिति मां भगवती राजराजेश्वरी मंदिर में कलश स्थापना के साथ शारदीय नवरात्रा का शुभारंभ हुआ। 1300 वर्ष पूर्व से मां भगवती राजेश्वरी की पूजा अर्चना होती है, इसे दु:ख हर स्थान के नाम से भी जाना जाता है,क्योंकि पुराने जमाने से श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां आने से लोगों का दु:ख हरण हो जाता है, इसीलिए इसे दु:खहर स्थान भी कहा जाता है। यहां विराजमान मां भगवती राजराजेश्वरी सिद्दीपीठ एवं शक्तिपीठ में से एक है।
बताया जाता है कि 1100 ईसवी पूर्व राजनगर प्रखंड के महरैल निवासी रूपी उपाध्याय को मां भगवती ने स्वप्न दिया कि मैं डोकहर गाँव स्थित चंद्रभागा नदी में विराजमान हूँ। स्वप्न के आधार पर चंद्रभागा नदी में खोजा गया, तो साक्षात माँ भगवती राज राजेश्वरी की प्रतिमा मिला। इसके बाद नदी के किनारे ही लोगों द्वारा प्रतिमा का पूजा अर्चना करने लगा। इसीलिए आज भी मंदिर का गर्भगृह जमीन से करीब दस फीट नीचे है। 1300 ईसवी में दरभंगा महाराज के शिष्य महेश ठाकुर मंदिर में दर्शन के लिए आया इसके बाद उनके द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख है, जिसे आज तक कोई नहीं पढ़ पाया है। यहाँ तक की देश विदेश के पर्यटक भी नहीं पढ़ पा रहा है। यहाँ सालों भर पूजा अर्चना होती रहती है। ठंढा हो या गर्मी आरती प्रतिदिन सुबह 04बजे एवं संध्या 08:30बजे निर्धारित समय पर ही होता है। शारदीय नवरात्रा में 4बजे सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। आरती के समय डोकहर, बहरबन, बेलाही,सीबीपट्टी, बेल्हबार, नाजीरपुर, दोस्तपुर सहित आसपास गाँव के सैकड़ों की संख्या में महिला एवं पुरूष श्रद्धालु रहते हैं। क्योंकि आरती के समय माँ का दर्शन का बड़ा ही महत्व है। यहां सिद्धिपीठ एवं शक्तिपीठ होने के कारण दूर-दूर से एवं देश विदेश के पर्यटक भी पूजा के लिए आते हैं, और सालों भर पूजा अर्चना होती है। मंदिर के पंडा दिगम्बर भारती, बौकु भारती, कार्तिक भारती, गांधी भारती समिति के अध्यक्ष शोभित पासवान, राजकुमार पासवान ने बताया की यहां पर श्रद्धालु सच्चे मन से जो मन्नते मांगते हैं, वो पूरा हो जाता है। मन्नते पूरा होने के बाद श्रद्धालु सालों भर चढ़ावा के लिए आते रहते हैं। सालों भर मुण्डन एवं बलि प्रदान होता है एवं शारदीय नवरात्र में सांस्कृतिक एवं रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।