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खजौली
आज के आधुनिकता की इस चकाचौंध में इलेक्ट्रॉनिक्स लाइटों के प्रति लोगों के झुकाव के कारण मिट्टी के दीये की मांग भले ही अब कम हो गई है, किन्तु दीपावली व छठ पर्व में मिट्टी के बर्तन व दीये की मांग बढ़ जाती है।
प्रकाश पर्व दीपावली व लोक आस्था का महापर्व छठ निकट आते ही प्रखंड क्षेत्र के कुम्हारों के चेहरे पर रौनक आ जाती है। मिट्टी के बर्तन व दीये की मांग बढ़ने के कारण वे दिनरात मांगों की पूर्ति में व्यस्त हो जाते हैं। पूरे परिवार इसमें लग जाते हैं।
प्रखंड के सुक्की ग्राम निवासी पंडित कालिकांत झा बताते हैं कि दीपावली में मिट्टी के दीये जलाने के कई कारण हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बढ़ते कीट-पतंग के प्रकोप को समाप्त करने के लिए मिट्टी के दिए काफी उपयोगी हैं। मिट्टी के जलते दिए से कीट-पतंग दिए की ओर आकर्षित होते हैं और जलती दीये के संपर्क में आकर वे जल जाते हैं। इससे कीट-पतंग का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाता है।
अब लोग भले ही इलेक्ट्रॉनिक्स लाइटों की ओर आकर्षित होते हैं। किन्तु सही मायने में जब तक घर में मिट्टी के दिए नहीं जलाए जाते हैं, तब तक उसकी मां लक्ष्मी की पूजा अधूरी मानी जाती है। यहीं कारण है कि घर के हर चौखट पर लोगों के द्वारा मिट्टी के दिए जलाए जाते हैं।
मिट्टी के बर्तन बनाने की कला अब नहीं सीखना चाहते युवा :
अपने हाथ की कला से चाक पर मिट्टी को आकार देने वाले प्रखंड के ठाहर ग्राम के वार्ड आठ निवासी धनराज पंडित, उनके पुत्र रंजीत पंडित बताते हैं कि आधुनिक समय में मिट्टी से बने सामग्री की मांग काफी कम हो गई है। एक समय में मिट्टी के बर्तनों की मांग इतनी अधिक थी की सैकड़ों लोग मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने-अपने परिवार का भरण-पोषण किया करते थे। किन्तु अब यह सिर्फ दिवाली व छठ पर्व के साथ अन्य किसी अवसर पर व्यक्ति विशेष के द्वारा दिये आर्डर पर ही मिट्टी का बर्तन बनाने के लिए चाक चलाने का मौका मिलता है। इस कारण मिट्टी का बर्तन बनाने की कला, अब नए युग में युवा सीखना भी नहीं चाहते हैं। यह महत्वपूर्ण कला अब विलुप्त हो रहा है। इसे बढ़ावा देकर संरक्षित करने की आवश्यकता है।