10 वर्ष की उम्र तक आते-आते गांधीजी ने कई स्कूल बदल लिए

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महात्मा गांधी ने देश को आजा़दी का रास्ता दिखाया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गांधी जी के स्कूल के दिन कैसे थे। इसका खुलासा राजकोट के हाई स्कूल में सात वर्षों तक प्रिंसिपल रहे जेएम उपाध्याय की 1965 में एक किताब में किया। जिसमें गांधीजी के विद्यार्थी जीवन के बारे में कई खुलासे किए गए है।

मोहनदास ने कई स्कूल बदले Gandhis Childhood इस किताब में बताया गया है कि 10 वर्ष की उम्र तक आते-आते गांधीजी ने कई स्कूल बदल लिए थे। स्कूल बदलने के अलग-अलग कारण थे। वह बहुत होनहार विद्यार्थी नहीं थे। परीक्षा परिणामों में पर्सेंटेज 45 से 55 के बीच रहता था।

अकसर कम उपस्थिति रहती थी कक्षा में बालक मोहनदास की उपस्थिति बहुत कम रही। कक्षा तीसरी में वे 238 दिनों में 110 दिन ही स्कूल गए।

मतलब वह कम ही स्कूल जाते थे। दो बार एक ही क्लास में बैठना पड़ा , कम उपस्थिति के कारण मोहनदास को एक साल रिपीट करना पड़ा था इसके बाद ठीक-ठाक पढ़ने के कारण रिजल्ट कुछ बेहतर हो सका जिसके बाद 66.5 % और 8वीं रैंक आई। स्कूल से अकसर गायब cमिडिल स्कूल में भी उपस्थिति अच्छी नहीं थी।

छुट्टी मारने का कारण था पिताजी की तबीयत खराब रहना । बचपन का दोस्त बना बाबू aजूनियर स्कूल में मोहनदास का साथी त्रिभुवन भट्ट अक्सर उनसे बेहतर अंक पाता था। त्रिभुवन एक बाबू बना और उसकी आखिरी नौकरी राजकोट के मुख्यमंत्री के पद पर थी। हाईस्कूल में गांधीजी का पक्का दोस्त एक मुस्लिम था (चित्र), जबकि हेडमास्टर पारसी।

स्कूल की बिल्डिंग जूनागढ़ के नवाब द्वारा दिए गए 63,000 रु. से बनी थी और इस तरह के विभिन्न धर्मों के प्रभाव में गांधीजी बड़े हुए और उन पर इसका प्रभाव आजीवन रहा।
क्या आप जानते हैं?
गांधीजी का भाई करसन उनसे दो कक्षा आगे था मगर दो बार फेल हुआ। एक समय गांधी और करसन एक ही कक्षा में आ गए थे।
गांधीजी को चरित्र प्रमाणपत्र में ‘वेरी गुड’ मिलता था जबकि अन्य विद्यार्थी ‘गुड’ से ऊपर नहीं पहुंच पाते थे।

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