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पटना /प्रसिद्ध यादव।
जब सावन आग लगाए तो फिर उसे कौन बुझाये!किसान शायद दगा खाने के लिए ही बने हैं।हां इनकी बातें करने वाले, इनके खुशहाली के वादे करने वाले, इनके दुर्दशा पर आँसू बहाने वाले बड़े बड़े सदनों में पहुंच कर सत्ता में जरूर आ गए। किसान अपने दुर्दिन को नियति का खेल मानकर आँसू पीकर रह जाते हैं या आत्महत्या कर जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं।
भारतीय किसान आज भी प्रकृति पर निर्भर हैं और किसान खेती पर। प्रकृति दाग दिया तो फ़सल गया और फसल गया तो किसान गया। इसलिए किसानों को प्रकृति का साधु कहा गया है। आधा सावन खत्म होने वाला है और धान के बिचरे बचाने भर भी न अषाढ़ में बारिस हुई न सावन में हो रही है। कुछ किसान बोरिंग से धान की खेती कर रहे हैं ,लेकिन इससे पूर्ण धान की रोपनी की संभावना कम है।
अगर रोपाई हो भी गई तो अकाल का भय बना हुआ है। किसानों के फसल बीमा के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू है ।इसमें खरीफ़ फसल के लिए फसल मूल्य के 2 फीसदी और रबी फसल के लिए 1.5 फीसदी निर्धारित है।
खरीफ फसल की बीमा की अंतिम समय 10 अगस्त है। इसकी जानकारी कृषि सलाहकार, कृषि पदाधिकारी, बीडीओ,जनप्रतिनिधियों को किसानों को देना चाहिए ताकि समय पर अपनी फसलों की बीमा करवा सकें।सावन के महीने का प्रकृति से भी गहरा संबंध है क्योंकि इस माह में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण धरती बारिश से हरी-भरी हो जाती है।
ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में बारिश होने से मानव समुदाय को बड़ी राहत मिलती है। इसके अलावा श्रावण मास में कई पर्व भी मनाए जाते हैं लेकिन सावन की बेवफाई से आग लगी हुई है और जब सावन आग लगाए तो उसे कौन बुझाए?