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पटना /प्रसिद्ध यादव।
बिहार की राजनीति में अम्बेडकरवादी हावी !
बिहार की धरती पर अम्बेडकर के सपनों को साकार करने वाले ऐसे हावी हुए कि 1990 से लेकर अबतक करीब 32 वर्षों तक दूसरा कोई बिहार की अगुवाई नही कर सका न भविष्य में कोई संभावना है।लालू यादव, राबड़ी,देवी,नीतीश कुमार, जीतन राम ,नीतीश कुमार के इर्दगिर्द सत्ता घूमती रही।भाजपा नीतीश के सहारे अपनी जनाधार बढ़ाने में कामयाब हुई, 40 में से 39 सीटों पर एनडीए लोकसभा में परचम लहराया, लेकिन खुद नीतीश के आगे बौने बनी रही।
नीतीश कुमार अतिपिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय को तरज़ीह देती रही।यही कारण है कि बिहार की राजनीति तीन कोण बन गई।दो कोण कहीं भी जाकर मिल जाता ,सरकार उसकी बन जाती।नीतीश इस मायने में खुशकिस्मत हैं कि वे दोनों कोणों के फ्रेम में ठीक से बैठ जाते हैं, भले ही इनकी क्षमता तीसरे नम्बर की है। भाजपा और राजद गठबंधन में 36 का सम्बंध होता है।
ये दोनों कोण कभी नही मिल सकता है ऐसे राजनीति अनिश्चितता का है, कुछ भी हो सकता है। नीतीश को गठबंधन में साथ आने से भाजपा केवल बिहार से सत्ताच्युत नही हो रही है, बल्कि केंद्र में भी खटिया खड़ी हो सकती है।बिहार की राजनीति में लालू यादव, नीतीश कुमार चेहरे हैं तो भाजपा में कौन है?भाजपा का हिन्दू कार्ड पर महंगाई, बेरोजगारी भारी पड़ गया है और इसका ताजा नमूना 7 मार्च को तेजस्वी के नेतृत्व में जनसैलाब के रूप में देखने को मिला।इतनी भीड़ चड्डा और शाह के आने पर भी नहीं हुई थी।नीतियां के माहिर नीतीश हैं तो लालू सशक्त ,मजबूत, जनाधार वाले नेता हैं।जब से बिहार में इन दोनों अम्बेडकर वादी नेताओं का पदार्पण हुआ है तब से मनुवादियों का राजनीति अवसान हो गया है,यहां से पटाक्षेप हो गए हैं।अब ईडी सीडी का रौब नही चलने वाला है।