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पटना
द क्रिएटिव आर्ट थियेटर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा रंग मार्च स्टूडियो, पटना में दीपक श्रीवास्तव लिखित एवं कुमार मानव निर्देशित हास्य व्यंग्य नाटक अंधा मानव का मंचन किया गया। पूरे कार्यक्रम का निर्देशन सैयद अता करीम ने किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ रंगकर्मी सैयद रिज़वानुल्लाह एवं मृत्युंजय शर्मा ने किया और आज के रंगमंच एवं समाज पर अपना व्यक्तव्य रखा।
प्रस्तुत नाटक अंधा मानव एक चौराहा पर घटित घटनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों पर प्रकाश डालता है। इस चौराहा पर एक पागल, बाल भिखारी एवं व्यस्क भिखारी रहते हैं। एक महिला का आगमन होता है जो हिन्दुस्तान के लोगों पर रिसर्च कर रही है। तभी एक पागल किसी व्यक्ति का खाना छीनकर भागते हुए मंच पर आता है, इस बात के लिए उसे पीटा जाता है। फिर बारी-बारी से बाल भिखारियों का भीख मांगते हुए मंच पर आगमन होता है और वे पागल को खाते देख उससे खाना मांगते हैं। मानवीयता का परिचय देता पागल सभी को छीनकर लाये खाना खाने को देता है। वह बोलता है कि जिस देश का बचपन भूखा हो उस देश की हालत क्या होगी। इसके बाद व्यस्क भिखारी आता है जो अपाहिज एवं अंधे का स्वांग रचते हुए आते-जाते लोगों को ठग कर अपना पेट भरता है, वहां पर तैनात हवलदार इनसे पैसों की वसूली करता है। महिला रिसर्चर, हवलदार से प्रश्न करती है की आप इनलोगों से पैसे क्यों लेते हैं, क्या यह उचित है। हवलदार रोब झाड़ता हुआ चला जाता है। फिर एक नेता जी का कार्यकर्ताओं सहित आगमन होता है जो अपनी जीत पक्की करने हेतु भाषण देते हैं, पागल द्वारा रोटी मांगने पर कहते हैं कि इतना जोरदार भाषण से भी तुम्हारा पेट नहीं भरा। अगर नहीं भरा तो मेरा दो-चार भाषण अगले चौक चौराहों पर होने वाला है, आ कर सुन लेना, तुम्हार पेट हमेशा के लिए भर जाएगा। इस सारे घटना क्रम में भिखारी और पागल को अदालत से होकर गुजरना पड़ता है। अंततः पागल अपनी बातों को अदालत में रखते हुए हृदयाघात से मर जाता है। उसका मरना और उसकी बातें कई सवाल खड़ा करता है। रिसर्चर आती है और पागल से कहती है कि मेरा रिसर्च पूरा हो गया। मानव अंधा हो गया। अंधा मानव।
नाटक में भाग लेने वाले कलाकार थे अर्चना कुमारी, कुमार मानव, भुनेश्वर कुमार, मंतोष कुमार, मयंक कुमार, सरबिन्द कुमार, विजय कुमार चौधरी, राजकिशोर पासवान।
प्रकाश परिकल्पना हिमांशु कुमार ने किया। घ्वनि संयोजन मानसी कुमारी का था। मंच परिकल्पना बलराम कुमार, रूप सज्जा माया कुमारी ने किया।