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पंकज कुमार / पालीगंज
पालीगंज धान का कटोरा कहे जाने वाला पालीगंज का इलाका नहरों में पानी के लिए तरस रहा है। रोहणी नक्षत्र के बाद अद्रा नक्षत्र भी धीरे धीरे गजरते चला जा रहा है, पर नहरों में अबतक पानी नही आया है। धान की बिचड़ा अद्रा नक्षत्र में जो किसान डालते थे वे निजी पम्पिंग सेट के सहारे बिचड़ा डाल रहे है। रोहणी नक्षत्र में जो बिचड़ा डाला जा चुका है वह भी पानी के अभाव में सूख रहा है। नहरी क्षेत्र में भी किसान विवस होकर निजी नलकूप कराने लगे है।
पालीगंज में नहरों का निर्माण सर्वे के समय से पहले हुआ है । इस क्षेत्र में दो नहरे निर्मित है।एक बड़ी नहर अरवल से निकलकर मुड़िका तक जाती है वह नौ नम्बर मुड़िका रजवाहा कहलाती है। इसकी लम्बाई 32 किलोमीटर है। वही दूसरी बड़ी नहर बारा-सतपुरा के पास से निकलकर दुल्हिनबाज़ार के हरपुरा तक जाती है उसे दस नम्बर नहर कहा जाता है। इसकी लम्बाई 37 किलोमीटर है। इस नहर से दो ब्रांच नहरे निकलती है। पहला चढ़ोस ब्रांच है जिसकी लम्बाई 7 किलोमीटर है। दूसरा भरतपुरा ब्रांच जिसकी लम्बाई 8 किलोमीटर है। बिहार सरकार का सिचाई विभाग रखरखाव व निचले हिस्से तक पानी पहुचाने में विफल साबित हो रहा है।
जिससे सिंचित एरिया के आधा भाग तक ही पटवन हुआ करता था। किसानों ने नहरों में पानी नही आने के कारण आंदोलन करना शुरू कर दिया। नतीजतन सरकार ने 1997 में दस नम्बर नहर को किसानों के समिति पालीगंज कृषक समिति को हस्तांतरित कर दिया गया। जो पालीगंज वितरणी के नाम से जाना जाता है। शुरू के दिनों में समिति ने गांव गांव में कमिटी बनाकर नहरों की दशा सुधारने का प्रयत्न करते हुए श्रमदान से नहरों की उड़ाही कर अंतिम छोर तक पानी पहुँचाया।
लेकिन हस्तांतरण के बाद नहर विभाग द्वारा किसी भी प्रकार का सहयोग समिति को नही मिला। नहर की उड़ाही भी समय पर नही कराई जा सकी। फलतः धीरे धीरे सिंचित क्षेत्र कम होते गए।समय पर पानी नही मिलने के कारण किसानों को समय पर विचड़ा डालने में दिक्कत होने लगी। रोपाई के समय भी किसान असमान की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। ऐसे हालात में किसान धीरे धीरे निजी पम्प सेट का सहारा लेने लगे। अब किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक ओर नहर पटवन शुल्क देना पड़ रहा है वही दूसरी ओर पम्प सेटों से पटवन करना पड़ रहा है। हालात इतने खराब हो चुके है कि शीर्ष नहरों में आठ किलोमीटर तक ही सिंचाई हो पाता है।
शाखा नहरों का तो हालत ये है कि चढ़ोस ब्रांच में मात्र एक किलोमीटर ही पानी पहुँच पाता है। नहर किनारे बसे गांव के लोग भी कम जिम्मेदार नही है। घरों के नाली का पानी नहर में ही गिरा रहे है । नहर चाट को पूरी तरह अतिक्रमण कर लिया गया है। आज तक ऐसे लोगों को किसी ने रोकने का प्रयास नही किया न ही उनलोगों को किसी का डर है । कोई देखने टोकने वाला नही है।
पालीगंज वितरणी के समानांतर मुड़िका वितरणी है जो विभाग द्वारा संचालित किया जाता है। जिसकी देखरेख के लिए एक सहायक अभियंता, तीन कनिये अभियंता, एक अमीन,चार पेट्रोल, दो संग्राहक, बहाल है।फिर भी नहरों की हालात बद से बदतर हो चुकी है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिर्फ ऊपरी शीर्ष के चार पाँच किलोमीटर तक ही सिंचाई हो पाती है। किसान विवश और लाचार है कोई देखने सुनने वाला नही है। किसी भी पार्टी की सरकारें किसानों के लिए योजना चलाने की बात करती है।लेकिन किसान ठगे जा रहे है। किसानों के सिचाईं के लिए कोई ठोस नीति नही बनाई गई है।
इसका मुख्य समस्या यह है कि सोन नदी में बिहार से ऊपर दो डैम्प रिहन्द और बाणसागर बना दिया गया।अब वर्षा होती है तो उन दोनों बांध से बचा हुआ पानी बिहार को मिलता है। इसके चलते पटना कैनाल में बेलसार लख से नीचे सात दिन नहर खुलती है और सात दिन बंद कर दिया जाता है।जिससे पानी के अभाव के कारण पानी से पटा हुआ ही क्षेत्र पुनः पटपाती है तबतक नहर पुनः बंद कर दिया जाता है।फलतः नहरों में पानी नीचे तक नही आने के कारण शाखा नहरे एकदम प्रायः समाप्त हो गयी है। सिंचित क्षेत्र के कुल पटवन शुल्क के 30 प्रतिशत हिस्से प्रति वर्ष नहर विभाग ले लेती है। लेकिन नहरों की उड़ाही पर एक रुपया भी खर्च नही की गयी है।विगत दस वर्षों सें नहरो में उड़ाही बंद है । नहर का ढांचा पूर्णतः समाप्त हो चुका है सिर्फ नहरों में बने पुल पुलिया के निशान मात्र ही बच्चे हैं। किसानों के सिचाईं के लिए कोई ठोस नीति नही बनाई गई है। अगर समय रहते इंद्रपुरी में रिजर्व वायर ( सिंचित जल जमा क्षेत्र ) का निर्माण नही कराया गया तो जो पटना ,आरा, बक्सर, नहर से कुछ क्षेत्रों में अभी सिचाई हो रही है कुछ दिनों में पूर्णतः समाप्त हो जाएगी।सिर्फ बरसाती नहर बनकर रह जायेगी