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पटना /प्रसिद्ध यादव।
भाजपा की तानाशाही रवैये से देश के लोग परेशान हैं अब सहयोगी नीतीश कुमार भी हाथ खड़े कर रहे हैं। नीतीश के पास धर्म कार्ड जैसे घिनोने खेल नही है कि जनता को धर्म के नाम पर अंधा बनाएं।ऐसे में भाजपा के साथ जनविरोधी नीतियों के दाग अपने ऊपर नही लगने देना चाहते होंगे।ऐसे में नीतीश क्या कर सकते हैं?भाजपा से जनसरोकार के मुद्दे को लागू करवाएंगे ! असम्भव। अगर भाजपा जनसरोकार के मुद्दे लागू करेगी तो फिर इनके कॉरपोरेट घरानों के यार क्या करेंगे?उनकी शटर गिर जायेगी।अब नीतीश कुमार कॉंग्रेस,राजद के साथ मिलकर फिर नई सरकार बनाएंगे!भाजपा बिहार के सत्ता से बेदखल होगी।
भाजपा जदयू को छोड़ना नहीं चाहेगी,क्योंकि फिर आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार से सफाया हो जाएगी।भाजपा बिहार में अकेले दम पर चुनाव लड़ने की स्थिति में नही है। अब बिहार में क्या होगा? इसे जानने के लिए कुछ निम्न घटनाक्रमों को देखें-नीति आयोग की संचालन समिति की बैठक से बिहार के सीएम नीतीश कुमार के दूरी बनाने के तत्काल बाद जदयू ने मोदी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ ही राज्य में भाजपा और जदयू के बीच कड़वाहट बढ़ने का साफ संदेश गया है। दरअसल, नीतीश अहम बैठकों से दूरी बना कर भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिशों में जुटे हैं।
सबसे पहले 17 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में तिरंगे को लेकर देश के सभी मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई गई थी, मगर नीतीश कुमार इस बैठक में शामिल नहीं हुए.- उसके बाद 22 जुलाई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई भोज में भी नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया था, मगर वे उस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए.- 25 जुलाई को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया था, मगर वे नहीं गए.- 7 अगस्त यानी आज भी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नीति आयोग की बैठक में शामिल होने के लिए बुलाया गया था मगर वह इस बैठक में शामिल नहीं हुए.इससे स्पष्ट है कि नीतीश को भाजपा से मन भर गया और शीघ्र ही यहाँ बड़ा उलटफेर होने की संभावना है।