बिहार में पिता की अर्थी को कंधा व मुखाग्नि देने वाली 3 बेटियों की कहानी,

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बिहार में जब पिता की अर्थी निकली तो पूरा इलाका रोया कहते हैं बेटा इसलिए जरुरी है ताकि अंतिम यात्रा के दौरान अर्थी को कंधा मिलेगा।

तो किशनगंज में जब एक पिता की अर्थी निकली तो उसको कंधा देने बेटियां खड़ी थीं.मुखाग्नि की रस्म भी बेटी ने ही अदा की क्योंकि उस पिता की तो संसार ही उनकी बेटियां थी।

किशनगंज में तीन बेटियों ने बेटा का फर्ज निभाया. बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा दिया और छोटी बेटी ने मुखाग्नि दी।

फर्ज निभाकर तीन बेटियों ने मिसाल कायम की है. उन्होंने अपना फर्ज निभाकर उन लोगों को जवाब दिया है ।

जो ये सवाल करते हैं कि आखिर बेटा नहीं होगा तो अंत में कौन साथ देगा दरअसल, शहर के रौलबाग मुहल्ले में बुजुर्ग मिथिलेश कुमार का निधन बुधवार को हो गया।

वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे तीनों बेटियां ही पिता की देखभाल करती थी बड़ी बेटी एमजीएम बीएससी नर्सिंग की छात्रा है, जबकि मझली प्रियंका कुमारी एमजीएम में स्टाफ नर्स के पद पर कार्यरत है।

वहीं छोटी बेटी लक्ष्मी कुमारी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सीएचओ के पद पर कार्यरत है।

पिता की मौत के बाद छोटी बेटी लक्ष्मी ने मुखाग्नि दी, जिसने यह नजारा देखा, सभी नम आंखों से सराहना किये. अंतिम संस्कार की इन रस्मों से महिलाओं के दूर रहने की प्रचलित परंपरा के बीच जब इन बेटियों ने पिता के लिए पुत्र की भूमिका भी निभायी तो माहौल गमगीन हो गया।

शव यात्रा में शामिल होकर बेटियों की हौसला अफजाई करते हुए उन्हें संत्वाना दीतीन बेटियों के द्वारा जिस तरह अपने पिता की देखभाल की गयी और पिता ने तीनों को अपने पैर पर खड़ा किया।

बेटे की तरह ही तीनों को पाला. और आखिरी यात्रा में जब बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा दिया।

तो सब रोए. छोटी बेटी ने पिता को अग्नि दी और एक साथ कई मिथकों को इस परिवार ने तोड़कर दिखाया।

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