दीपोत्सव, पंच पर्व पर जानें,शुभ मुहूर्त,पूजन विधि,कथा।धनतेरस, भाईदूज सहित विस्तार से…

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शंखनाद टाइम्स, १ नवम्बर,

इस बार पंचपर्व दीपोत्सव त्रिपुष्कर योग में शुरू हो रहा है,इस दीपोत्सव पर देखें विस्तार से,कैसे करें पूजन??

दीपोत्सव धनवन्तरि त्रयोदशी से यम द्वितीया तक चलेगा। दीपोत्सव का यह त्योहार पांच दिनों तक चलने वाला महापर्व है।

इन पांच दिनों में अलग-अलग कथानुसार देवी देवताओं का पूजन कर परंपरा का निर्वाह किया जाता है।

पंचपर्व: तिथि और मुहूर्त

2 नवंबर : धनतेरस(धन्वन्तरि त्रयोदशी )

वैसे तो शास्त्र अनुसार धनतेरस का सम्पूर्ण दिन शुभ होता है। फिर भी पंचांग अनुसार धनतेरस के दिन सुबह 8 से 10 बजे के बीच खरीददारी के लिए बहुत शुभ समय होगा। इसमें स्थिर लग्न (वृश्चिक) उपस्थित रहेगी, दूसरा शुभ मुहूर्त सुबर 10:40 से दोपहर 1:30 के बीच होगा। इस समय लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त उपस्थित रहेंगे। दोपहर 1:50 से 3 बजे के बीच भी खरीददारी के लिए स्थिर लग्न का शुभ मुहूर्त होगा। शाम 6:30 से रात 8:30 के बीच स्थिर लग्न का शुभ मुहूर्त रहेगा।

इस समय खरीदारी से बचें

पंचाग के अनुसार धनतेरस के दिन दोपहर 3 से 4:30 बजे के बीच राहुकाल रहेगा इसलिए इस समय में खरीददारी करने से बचें।

धनतेरस पूजन का शुभ समय

शाम 6:30 बजे से 8:30 बजे के बीच स्थिर लग्न(वृष) रहेगी और स्थिर लग्न में की गई पूजा का फल हमेशा स्थिर रहने वाला होता है। धनतेरस को शाम 6:30 से 8:30 बजे के बीच पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त होगा।

🌷पूजन विधि🌷

पूजास्थल में चावल या गेहूं की एक छोटी ढेरी बनाकर उस पर देसी घी का एक दिया जलाएं माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए तीन बार श्रीसूक्त का पाठ करें। मां लक्ष्मी सहित सभी देवी देताओं को भोग लगाएं।

कथा

धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धनवंतरी सभी रोगों के लिए औषधि कलश में लेकर प्रकट हुए थे। अतः इस दिन भगवान धनवंतरी का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है।

धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्ष पर्यन्त नहीं रहती। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन व प्रज्जवलन कर भगवान श्रीचित्रगुप्त से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है।

3 नवंबर : रूप चतुर्दशी

रूप चतुर्दशी पर चित्रा नक्षत्र दिनभर रहेगा। चंद्रमा और बुध दोनों इस नक्षत्र में रहेंगे और चंद्रमा पर बृहस्पति की दृष्टि होने से घर की सजावट और सुख-सुविधाओं की चीजों की खरीदारी कर सकते हैं।

दीपोत्सव का दूसरा दिन नरक चतुर्दशी अथवा रूप चौदस होता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व शरीर पर तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। ऐसा माना जाता है, कि इस दिन सूर्योदय के पश्चात स्नान करने वाले मनुष्य के वर्षभर के शुभ कार्य नष्ट हो जाते हैं। एवं इस दिन स्नान के पश्चात दक्षिण मुख करके यमराज से प्रार्थना करने पर व्यक्ति के वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन सायंकाल देवताओं का पूजन करके घर, बाहर, सड़क आदि प्रत्येक स्थान पर दीपक जलाकर रखना चाहिए।

4 नवंबर : दीपोत्सव

दीपावली पर सूर्योदय के साथ ही चतुर्ग्रही शुभ योग शुरू हो जाएगा, जो रातभर रहेगा। शास्त्र अनुसार प्रदोषकाल में माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणपति, मातासरस्वती, कुबेर भंडारी और भगवान नारायण की पूजा का विधान है। *इस साल दिवाली पर एक ही राशि में चार ग्रहों की युति बनेगी, सूर्य, बुध, मंगल व चंद्र तुला राशि मे रहेंगे और गुरु व शनि मकर राशि में एक साथ होंगे।* इस वजह से ये दिवाली अत्यंत शुभ रहेगी।

दिपावली पर्व विशेष

अमावस्या तिथि का प्रारम्भ: 4 नवंबर 2021 को प्रात: 06:03 बजे से.

अमावस्या तिथि का समापन: 5 नवंबर 2021 को प्रात: 02:44 बजे तक.

लक्ष्मी पूजन मुहूर्त्त शाम 6 बजकर 9 मिनट से रात 8 बजकर 20 मिनट तक अवधि- 1 घंटे 55 मिनट

प्रदोष काल मुहूर्त- शाम 5 बजकर 34 मिनट से रात 8 बजकर 10 मिनट तक

वृषभ काल मुहूर्त- शाम 6 बजकर 10 मिनट से रात 8 बजकर 06 मिनट तक

पर्व विशेष – पांच दिवसीय इस पर्व का प्रमुख दिन लक्ष्मी पूजन अथवा दीपावली होता है। इस दिन रात्रि को जागरण करके धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है।

इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश तथा द्रव्य, आभूषण आदि का पूजन करके 13 अथवा 26 दीपकों के मध्य एक तेल का दीपक रखकर उसकी चारों बातियों को प्रज्जवलित करना चाहिए एवं दीपमालिका का पूजन करके उन दीपों को घर में प्रत्येक स्थान पर रखें एवं चार बातियों वाला दीपक रातभर जलता रहे ऐसा प्रयास करें।

🌷दिवाली पर ध्यान रखें ये खास बातें🌷

लक्ष्मी पूजन की सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।

-मां लक्ष्मी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय हैं। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं. इनका भोग जरूर लगाएं।

5 नवंबर : गोवर्धन पूजा पर विशेष ध्यान रखें

दीपावली के अगले दिन राजा बली पर भगवान विष्णु की विजय का उत्सव है। श्रीकृष्ण ने इसी दिन देवेंद्र के मानमर्दन के लिए गोवर्धन को धारण किया था।

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाना जाता है। इस दिन प्रातः जल्दी उठकर घर के द्वार पर गोबर से गोवर्धन बनाकर उसे पेड़ की शाखों एवं फूलों से सजाकर उसका एवं गायों का पूजन करना चाहिए।

इस दिन मंदिरों में भगवान को छप्पन प्रकार का भोग लगाकर उसे प्रसाद रूप में वितरित करना चाहिए।

इस दिन मंदिरों में भगवान को छप्पन प्रकार का भोग लगाकर उसे प्रसाद रूप में वितरित करना चाहिए।

6 नवंबर : भाईदूज(यम द्वितीया)

इस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया था। यही वजह है कि आज भी इस दिन लोग अपने घर मध्याह्न का भोजन नहीं करते। कल्याण और समृद्धि के लिए भाई को इस दिन अपनी बहन के घर में ही स्नेहवश भोजन करना चाहिए।

इस दिन भगवान श्रीचित्रगुप्त की पूजा की जाती है। भाईदूज के दिन बहनों को अपने भाइयों को आसन पर बैठाकर तिलक लगाकर आरती उतारनी चाहिए एवं उसे विभिन्न प्रकार के व्यंजन अपने हाथ से बनाकर खिलाना चाहिए।

भाई को अपनी शक्ति अनुसार बहन को वस्त्र, स्वर्ण आदि देकर आशीर्वाद लेना चाहिए। इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करने से उसे धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ एवं सुख की प्राप्ति होती है।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्‌॥

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