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पटना/प्रसिद्ध यादव।
कदम बढ़े मयखाने की तरफ़सोचा दो घूंट हलक तक उत्तर लूँ।ये मयखाने में रहते हैं यमराजमौत को ही गले लगा लिया।बिहार में जब शराब की बिक्री थी तब लोग शराब पीकर इतना नही मरते हैं, जितना शराबबंदी में मर रहे हैं।सरकार इसकी समीक्षा जरूर करती होगी,लेकिन परिणाम अबतक संतोषजनक नहीं मिला। बिहार के सुदूर जिलों की बात छोड़ दें, राजधानी पटना के कोई भी ऐसा थानां नहीं है जहां अवैध शराब की बिक्री न हो। इससे सीधे फायदा बिक्री करने वाले को और इसके संरक्षण देने वाले को है।
शराबबंदी के लिए कौन कौन मोनेटरिंग कर रहा है।यह अबतक समझ में नही आया। पुलिस अवैध शराब बेचने वाले के पास जाती है।शराब बनाने वाली बर्तन फोड़ती है,कुछ शराब जब्त करती है और कुछ को पकड़कर अपनी ड्यूटी दर्शाती है। किसी मोहल्ले और गाँव में स्थाई रूप से शराब की धंधा बन्द हो इसके लिए क्या उपाय है? सरकार को इसी बिंदु पर फोकस करना चाहिए।
हर थाना में दर्जनों गांवों में शराब बनती है, ऐसी बात नही है, मुश्किल से 8 या 10 गांव होंगें।क्या इतना भी कंट्रोल करने की क्षमता बिहार पुलिस में नही है तो बेशक, यह धंधा स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से चल रही है। हर गांव में चौकीदार है,पंचायत जनप्रतिनिधि, स्वम सेवी संस्था, विद्यालय, आंगनबाड़ी आदि हैं।इसके बावजूद अगर कोई थाना शराबबंदी ही होने की रोना रोती है तो वैसे थाना प्रभारी को अविलम्ब हटा देना चाहिए। छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से मरने वालों की संख्या 8 हो गई है।
वहीं, 11 लोगों की आंखों की रोशनी चली गई है. गांव में स्वास्थ विभाग की टीम पहुंच गई है और पूरे गांव की ब्रेथ एनालाइजर से टेस्ट की जा रही है. जहरीली शराब से प्रभावित तकरीबन 30 लोग पीएमसीएच में भर्ती कराए गए हैं. बता दें कि यहां इलाज के दौरान 4 लोगों की मौत हो गई है. जहरीली शराब से प्रभावित राजनाथ महतो, धनिलाल महतो और सकलदीप महतो की मौत पीएमसीएच में इलाज के दौरान हुई है. ये तीनों नोनिया टोली के रहनेवाले थे.