वाल्मिकी रामायण में, सीता माता द्वारा पिंडदान देकर,राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष।

Share this


वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के वक़्त श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे।


वहाँ ब्राह्मण द्वारा बताए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए,

ब्राह्मण देव ने माता सीता को आग्रह किया कि पिंडदान का कुतप समय निकलता जा रहा है।


यह सुनकर सीता जी की व्यग्रता भी बढ़ती जा रही थी क्योंकि
श्री राम और लक्ष्मण अभी नहीं लौटे थे।


इसी उपरांत दशरथ जी की आत्मा ने उन्हें आभास कराया की पिंड दान का वक़्त बीता जा रहा है।


यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई।


तब माता सीता ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी,

उन्होंने फल्गू नदी के साथ साथ वहाँ उपसथित वटवृक्ष, कौआ, तुलसी, ब्राह्मण और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का का पिंडदान पुरी विधि विधान के साथ किया।


इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता का पिंड दान स्वीकार किया।


माता सीता को इस बात से प्रफुल्लित हुई कि उनकी पूजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है।


पर वह यह भी जानती थी कि प्रभु राम इस बात को नहीं मानेंगे क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है।

थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और पिंड दान के विषय में पूछा,
तब माता सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया।


प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार हो सकता है।


तब सीता जी ने कहा कि वहाँ
उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं।

भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा,
तब फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का क्रोध देखकर झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया।


सिर्फ वटवृक्ष ने सत्य कहा कि माता सीता ने सबको साक्षी रखकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया
पांचों साक्षी द्वारा झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दिया।

फल्गू नदी को श्राप दिया कि वोह सिर्फ नाम की नदी रहेगी,
उसमें पानी नहीं रहेगा।


इसी कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी है।


गाय को श्राप दिया कि गाय पूजनीय होकर भी सिर्फ उसके पिछले हिस्से की पूजा की जाएगी और गाय को खाने के लिए दर बदर भटकना पड़ेगा।


आज भी हिन्दू धर्म में गाय के सिर्फ पिछले हिस्से की पूजा की जाती है।

माता सीता ने ब्राह्मण को कभी भी संतुष्ट न होने और कितना भी मिले उसकी दरिद्रता हमेशा बनी रहेगी का श्राप दिया।


इसी कारण ब्राह्मण कभी दान दक्षिणा के बाद भी संतुष्ट नहीं होते हैं।

सीताजी ने तुलसी को श्राप दिया कि वह कभी भी गया कि मिट्टी में नहीं उगेगी।


यह आज तक सत्य है कि गया कि मिट्टी में तुलसी नहीं फलती
और कौवे को हमेशा लड़ झगड कर खाने का श्राप दिया था
अतः कौआ आज भी खाना अकेले नहीं खाता है।

सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का प्रभाव आज भी इन पांचों में देखा जा सकता है।


जहाँ इन पांचों को श्राप मिला वहीं सच बोलने पर माता सीता ने
वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी
और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी
जय सियाराम 🙏🙏

Related Posts

समाज को सही दिशा देने में चिकित्सकों की भूमिका महत्वपूर्ण:- प्रशांत किशोर।

पटना। जन सुराज के संस्थापक और पदयात्रा अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने कहा है कि समाज को सही दिशा देने में चिकित्सकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। जन सुराज के…

प्रतिभा सम्मान समारोह सह जिला सम्मेलन का किया गया आयोजन..

रविवार को वैश्य पोद्दार महासभा दरभंगा के द्वारा पुतई गांव के पेक्स राइस मिल परिसर में प्रतिभा सम्मान समारोह सह जिला सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता जिला अध्यक्ष…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *